
होनहार विरवान के होत चिकने पात यह मुहावरा भी फीका लगता है। जब हम अग्र पीठाधीश्वर एवं मलूक पीठाधीश्वर पूज्य राजेन्द्र दास महाराज के जीवन को देखते हैं। आज सर्वमान्य और सर्वग्राह केवल संत ही नहीं बल्कि सनातन के ध्वजवाहक भी है, जिन्हें भगवत साक्षात्कार हो चुका है और भक्त यदि उन्हें सुकदेव जी का अवतार मानते हैं, तो इसमें भी कोई आश्चर्य नहीं होता है।
दरअसल जब-जब कोई महापुरुष पृथ्वी पर अवतार लेता है, तब-तब इसकी पृष्ठभूमि और पहले से लिखी जाती है। टीकमगढ़ के अचरा ग्राम में एक ऐसे ब्राह्मण परिवार में मलूकपीठाधीश्वर का जन्म हुआ, जो पीढ़ियों से भगवत कार्य में लगा हुआ था। जब महाराज मां के गर्भ में आए तब से ही माता को सुखद अनुभूति होने लगी। साधु संत भगवान सपने में दिखने लगे यही नहीं जब जन्म हुआ तब माता को कोई प्रसव पीड़ा नहीं हुई जबकि इसके पहले जो बच्चे हुए उनमें जैसी प्रसव पीड़ा माताओ में होती है वैसी ही हुई। बाल्यावस्था से ही महाराज जी का पूजन में मन लगता था। यहां तक की स्कूल भी वह तिलक लगाकर साधु जैसे वेश में जाते थे। इसको लेकर तब के स्कूल शिक्षक ने कुछ आपत्ति भी दर्ज कराई तो महाराज जी ने पढ़ाई छोड़ना पसंद किया लेकिन अपनी वेशभूषा नहीं छोड़ी कुछ दिन बाद ही महाराज जिस निमित्त के लिए इस दुनिया में आए हैं वे फरिश्ते के रूप में भक्त माली जी महाराज गांव आए और महाराज जी के पिताजी से वृंदावन ले जाने के लिए अनुमति लेकर साथ में ले गए तब से अनेकों कहानी है। महाराज गांव आए तो कुछ दिन बाद वह फिर लेने आ गए और एक दिन इतने महान संत इस दुनिया के कहलाएंगे उस समय किसी ने कल्पना भी नहीं

की थी। सप्त ऋषियों की उत्पत्ति जहां ब्रह्मा जी के मानसिक संकल्प से हुई थी। वहीं राजेंद्र दास जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी अर्थात ऋषि पंचमी के दिन प्राचीन समय से ही विद्वानों आचार्य वैदिक ब्राह्मण के घर में हुआ रामस्वरूप पांडे, जो बहुत ही गुनी पवित्र धार्मिक संत भक्त माने जाते हैं। वहीं माता बृजलाता देवी जिनका विगत वर्ष ही देवलोक गमन हुआ है और किस तरह से वह आईसीयू में भर्ती रहते हुए श्रीजी और सखियों के साथ परिक्रमा करती रही है। बज रज उनकी हथेलियां में देखकर वहां का नर्स स्टाफ भी आश्चर्यचकित रहा।

बहरहाल जिस तरह से बचपन से ही स्वामी विवेकानंद शास्त्र के ज्ञाता संगीत आदि कलाओं में निपुण माने जाते थे और आगे चलकर वह एक महापुरुष बने या कहे कि चंद्रगुप्त को देखकर चाणक्य ने कहा यही होगा। अखंड भारत का भावी राजा और जिस तरह श्रीकृष्ण भगवान जी के बचपन के चमत्कारों को देखकर लोगों ने कह दिया था, यह कोई जरूर महान अवतार है और जब बड़े हुए थे उन्होंने इस बात को सच साबित भी कर दिया।

जिस तरह हनुमान जी ने बचपन में सूर्य को फल समझकर उसे खाने के लिए चले गए और बड़े हुए तो उनके महान कायों ने उन्हें कलयुग का सबसे ज्यादा पूजा जाने वाला भगवान बना दिया, कुछ इसी तरह महाराज जी का जन्म बचपन से ही अध्यात्म की ओर झुकाव और फिर अनायास ही श्रेष्ठ गुरु का मिलन जैसी घटनाएं सिद्ध कर रही है। महान संत का जन्म आज देश की अनेकों समस्याओं को समाधान की ओर ले जाने के लिए हुआ है। आज जब सनातन धर्म पर पश्चिमी सभ्यता का हमला हो रहा है। परिवार परंपरा बिखर रही है। गोवंश भीषणतम संकट के दौर से गुजर रहा है।

तब महाराज एक कुशल मार्गदर्शन की तरह राह दिखा रहे पूरे देश दुनिया में गौ सेवा की अलख जगाने वाले महाराज की प्रेरणा से जगह-जगह गौशाला में गौ सेवा शुरू हो गई है। वहीं जड़खोर धाम पचमेड़ा और ओरछा में हजारों-लाखों गौ माता की सेवा हो रही है। महाराज के दीक्षित शिष्य और उनके अनुयाई आज समाज में नई जागृति लाने के लिए महाराज की बातों का अनुसरण कर रहे हैं।

कुल मिलाकर ऋषि पंचमी के दिन जन्में महाराज का आज प्रगटोत्सव सनातनियों के लिए एक उत्सव जैसा दिन है। हमने ऋषि मुनियों के बारे में सुना पड़ा है, लेकिन महाराज जी को देखकर हम अनुभव कर रहे हैं और आधुनिक युग के ऋषि के रूप में उनका मार्गदर्शन प्राप्त कर रहे हैं। आमजन में ही नहीं संत समाज में भी सर्वमान्य और सर्वग्राह महाराज जी किसी प्रकार का चमत्कार नहीं दिखाई, लेकिन जो भी उनके प्रवचनों को ध्यान से सुनता है उसके जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन जरूर आता है। महाराज के बारे में संत प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि वे हमेशा शास्त्र आधारित बात करते हैं। ि महाराज ने आज तक अपनी किसी ि बात पर कभी कोई सफाई भी नहीं दी क्योंकि वे सोच विचार कर ही बोलते हैं। शास्त्र आधारित बोलते हैं और यह भी कहते हैं कि हम सच कहेंगे। जिसको बुरा लगना हो लग जाए।

चिकित्सक कई मौका पर महाराज को आराम करने की सलाह देते हैं, लेकिन गौवंश की सुरक्षा संवर्धन और सनातन की मजबूती के लिए महाराज दिन-रात परिश्रम कर रहे हैं। आज इस मौके पर पूरा सनातन समाज भी महाराज जी के दीर्घायु होने की कामना करता है क्योंकि कभी कभार ही ऐसे संत जन्म लेते हैं। जिनके जन्म से माता-पिता ही नहीं जन्मभूमि ही नहीं, बल्कि म समूची धरा अपने आप को गौरावित महसूस करती है। लाखों करोड़ों लोगों की आस्था के केंद्र महाराज जी जैसी विनम्रता और कहीं म दिखाई नहीं देती तुलसीदास की यह चौपाई महाराज जी पर सटीक बैठती है कि संत हृदय नवनीत समाना कहा कविनह पर कहा न जाना, क्योंकि नवनीत तो निजताप से पिघलता है, लेकिन महाराज जीव जैसे संत समाज के ताप से निकलते है और समाज के ताप को दूर करने के लिए ही दिन रात अपने आप को तपाते हैं।
(लेखक के अपने विचार हैं)
