सड़कों पर भटकती गोवंश: एक दर्दनाक विडंबना
योगेश सोनी
हमारी संस्कृति में गाय को माँ का दर्जा दिया गया है, जिसे ‘गोमाता’ कहकर पुकारा जाता है। लेकिन आज यही गोमाता सड़कों पर एक दर्दनाक विडंबना का शिकार हैं। दिन हो या रात, शहरों और गाँवों की सड़कों पर अक्सर आवारा घूमती गायें दिखाई देती हैं। ये न सिर्फ यातायात के लिए बाधा बनती हैं, बल्कि इनकी खुद की जान भी खतरे में रहती है। बड़े वाहनों से टकराने पर ये बेजुबान जानवर बुरी तरह से घायल हो जाते हैं, और छोटे वाहनों से टकराने पर इंसानों को चोट लगती है। यह समस्या इतनी गंभीर हो चुकी है कि आए दिन दुर्घटनाओं की खबरें सुनने को मिलती हैं।

जब हम इस समस्या की जड़ तक जाते हैं, तो एक कड़वा सच सामने आता है। आखिर भैंस या अन्य दुधारू पशु सड़कों पर क्यों नहीं भटकते? इसका सीधा-सा जवाब है अर्थव्यवस्था। भैंस या उच्च नस्ल की गायें अधिक दूध देती हैं, इसलिए वे अपने मालिकों के लिए आर्थिक रूप से मूल्यवान होती हैं। उनका पालन-पोषण भी ठीक तरह से किया जाता है। इसके विपरीत, कम दूध देने वाली देशी नस्लों की गायें अक्सर अपनी उपयोगिता खो देती हैं। उनके मालिक उन्हें आवारा छोड़ देते हैं, और ये बेचारी गायें सड़कों पर अपना जीवन गुजारने को मजबूर हो जाती हैं।
यह स्थिति केवल जानवरों के प्रति क्रूरता नहीं है, बल्कि हमारी सामाजिक सोच का भी एक प्रतिबिंब है। हम केवल उन्हीं चीजों को महत्व देते हैं, जो हमारे लिए फायदेमंद होती हैं। इस दृष्टिकोण ने न सिर्फ गौवंश को असहाय बनाया है, बल्कि यह हमारी मानवीय संवेदनाओं पर भी एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है।
इस समस्या का समाधान केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि व्यावहारिक भी होना चाहिए। सरकार और समाज दोनों को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा। सड़कों पर घूमने वाले आवारा सांडों को गो अभ्यारण्यों में भेजा जा सकता है या उनके बधियाकरण (नसबंदी) की व्यवस्था की जा सकती है। इसके साथ ही, कृत्रिम गर्भाधान (AI) जैसी आधुनिक तकनीकों के माध्यम से नस्ल सुधार पर जोर देना चाहिए। इससे देशी नस्लों की दूध देने की क्षमता बढ़ेगी, और लोग उन्हें सड़कों पर छोड़ने के बजाय घर में रखना पसंद करेंगे। जब गौवंश आर्थिक रूप से मूल्यवान होगा, तो उसका संरक्षण भी अपने आप ही होगा।
सड़कों पर भटकती गायें सिर्फ एक यातायात समस्या नहीं हैं, बल्कि यह हमारे नैतिक और सामाजिक मूल्यों की एक परीक्षा है। यह समय है जब हमें इस समस्या को गंभीरता से लेना चाहिए और ऐसे ठोस कदम उठाने चाहिए, जिससे हमारी ‘गोमाता’ सड़कों पर भटकने के बजाय सुरक्षित और सम्मानित जीवन जी सकें।
