सागर|पुतरा पुतरिया यानि मिटटी से बनी हुई मूर्तियां अब गुजरे जमाने की बात हो गई है,करीब तीन दशक पूर्व मिटटी से बने खिलोने बच्चो की पहली पसंद हुआ करते थे सावन के झूलों में मंदिरों में मिटटी से बनी भगवन की मूर्तियों के के माध्यम से पुराणों में उल्लेखित भगवान की लीलाओ के बारे में बताया जाता था, लेकिन डिजिटल युग में अब बीते ज़माने की बात हो गई है|
वक़्त जरूर बदल गया है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पुराणी परम्पराएं जीवित है | ऐसा ही मामला सागर जिले की रेहली तहसील की काछी पिपरिया से सामने आया है जिसमे मिटटी से बनी मूर्तियों जिन्हे बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्र में पुतरा पुतरिया भी कहा जाता है,इन्हे गाँव काछी पिपरिया में आज भी लोग पुतरा पुतरिया यानी मिट्टी की बनी मूर्तिकला को भूले नहीं है। हर साल भादों की पुर्णिमा को बकायदा मेले का आयोजन किया जाता है। करीब दो सो बर्षो से यह परम्परा अभी भी बरकरार है। प्राचीन काल में ग्रामीणों में शिक्षा की कमी एवं संसाधनों के आभाव में धर्मजागरण मूर्तिकला एवं चित्रकला के द्वारा झांकियो के माध्यम से किया जाता रहा।
इस मेले की “पुतरियो के मेले” के रूप में ख्याति है प्राचीनकाल में पाण्डेय परिवार द्वारा प्रारम्भ की गई मूर्तियो की झांकी की परम्परा चौथी पीडी तक बरकरार है,करीब 207 साल पहले स्व.श्री दुर्गाप्रसाद पाण्डेय द्वारा काछी पिपरिया गाँव में पुतरियो के मेले की शुरुवात की गई थी।स्व.पाण्डेय मूर्तिकला एवं चित्रकला में पारंगत थे उन्होंने लगभग एक हजार मूर्तियो का निर्माण कर अपने निवास को एक संग्रहालय के रूप में विकसित कर धार्मिक कथाओ के अनुसार कृष्ण लीलाओ की सजीव झांकियां सजाकर धर्मजागरण का कार्य प्रारम्भ किया था।जो वाद में पुतरियो के मेले के रूप में जाना जाने लगा है |
आधुनिकता के दौर में इस मेले के प्रति लोग का आकर्षण लगातार कम हो रहा है परंतु पाण्डेय परिवार इस परम्परा को सतत आने वाली पीढ़ियों तक जारी रखने का मनसूबा रखता है।