पहले विवेकहीन… फिर कर देती है शक्तिविहीन
भगवान की माया बड़ी विचित्र है,कब किसको क्या बना दे रंक से राजा,राजा से रंक। मनुष्य यही भूल जाता है,फिर परिणाम असहनीय हो जाते है।
“प्रकृति मनुष्य के सद्कार्यों को देख और बेहतर करने अपनी और से शक्ति प्रदान करती है,लेकिन होता क्या है मनुष्य इसे अपनी उपलब्धि मानकर खुद को खुदा समझने लगता है,अपने सहयोगियों को भी तुच्छ समझने लगता है। बस यही बात प्रकृति को बर्दाश्त नहीं होती और सबसे पहले प्रकृति विवेक विहीन करती है फिर पुण्य का बेलेंस खत्म होते ही शक्तिविहीन कर देती है”। ठीक वैसे ही जैसे मोबाइल कंपनी बेलेंस खत्म होते ही पहले आउटगोइंग काल,फिर कुछ दिन बाद इनकमिंग कॉल बंद कर देती है।
किसी संत ने अपने उपदेश में बड़ी ही सुंदर बात कही थी कि” कुछ अतिरिक्त कर अतिरिक्त प्राप्त शक्तियां,धन,बल,शोहरत प्रदाता द्वारा पात्रता समाप्त होते ही कभी भी बापिस ले ली जाती है। तुलसीदास जी ने भी अपने पद में लिखा है प्रभुता पाते ही मद आ ही जाता है। वही किसी शायर ने भी परिभाषित किया है,खुदा जब हुस्न देता है,नजाकत आ ही जाती है।
मनुष्य भ्रम में रहता है जैसे यह शक्तियां हमेशा बनी रहेंगी। लेकिन आज तक किसी को पता नहीं चला कि कब पुण्य,या पाप उदय होंगे,कब समाप्त हो जाए। प्रकृति द्वारा पावर विहीन किए जाने के बाद असली समस्या तो तब आती है जब छप्पन भोग खाने को सूखी रोटी खानी पड़ती है,जहां दंडवत प्रणाम के ढेर लगे रहते है दिन रात जयकारे लगते है उन्हें देखकर लोग मुंह मोड़ने लगते है।फिर जीवन कठिन हो जाता है। भीलन लूटी गोपियां, वही अर्जुन वही बाण इतिहास में दर्ज है ।
हाल ही में हम अपने आसपास ऐसे अनेक उदाहरण देखते रहते है, और सबसे बड़े उदाहरण राजनीति में सामने आते रहते है।निजी जीवन में मैने खुद एक समय अपने बाहुबल के धनी रहे व्यक्ति को पान की दुकान में जर्दा भी नहीं मिलने के हालात देखे,पान वाले ने उक्त व्यक्ति को देखते ही जर्दा का डिब्बा छुपाते देखा,तो सहज ही मेरे मित्र प्यारे मोहन ने कहा कि भैया क्या विचार कर रहे हो तो मैने प्यारे मोहन को बताया कि अच्छे वक्त में यदि व्यक्ति ने सदुपयोग किया होता तो आज भी लोग श्रद्धा से सम्मान में खड़े हो जाते।लेकिन मालिक समझने की भूल से आज क्या गुजरती होगी,बड़ा कठिन है,ऐसे ही वर्तमान में जो यही भूल कर रहे है उनका यह भविष्य ही है जो सामने खड़ा है। शेष शुभ