रहली तहसील के एक छोटे से गाँव काछी पिपरिया में करीब दो सौ आठ साल पुरानी परम्परा आज भी कायम है।भाद्रपद की पुर्णिमा को प्रतिबर्ष गाँव में मेला लगता है इस मेले की “पुतरियो के मेले” के रूप में ख्याति है।

प्राचीनकाल में पाण्डेय परिवार द्वारा प्रारम्भ की गई मूर्तियो की झांकी की परम्परा चौथी पीडी तक बरकरार है प्राचीन काल में ग्रामीणों में शिक्षा की कमी एवं संसाधनों के आभाव में धर्मजागरण मूर्तिकला एवं चित्रकला के द्वारा झांकियो के माध्यम से किया जाता रहा।करीब 208 साल पहले स्व.श्री दुर्गाप्रसाद पाण्डेय द्वारा काछी पिपरिया गाँव में पुतरियो के मेले की शुरुवात की गई थी।

स्व.पाण्डेय मूर्तिकला एवं चित्रकला में पारंगत थे उन्होंने लगभग एक हजार मूर्तियो का निर्माण कर अपने निवास को एक संग्रहालय के रूप में विकसित कर धार्मिक कथाओ के अनुसार कृष्ण लीलाओ की सजीव झांकियां सजाकर धर्मजागरण का कार्य प्रारम्भ किया था।जो वाद में पुतरियो के मेले के रूप में जाना जाने लगा।

