मप्र रहली। सागर जिले के रहली पहुंचे मुनिश्री नीरज सागर ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि प्रत्येक प्राणी को सुख की तलाश है।
बचपन से पचपन बीता सुनने में रोज-रोज सुनते हैं पता नहीं कब से सुन रहे कितना सुन चुके पर सुनकर परिणमन क्यों नहीं होता आपको अच्छे-अच्छे प्रवचन सुनकर संसार का सुख क्या है यह समझ में क्यों नहीं आता, क्योंकि हम संसारी और पर पदार्थ से परिचय बढ़ा लेते हैं और उसे समझने का प्रयास करते हैं और इसी में हमारा सुनना, सुन – ना – अनसुना हो जाता है।
मनुष्य जिस दिन स्वयं को समझने का प्रयास शुरु कर देगा उसी दिन से सुनने का भाव आ जायेगा दूसरों को समझने से पहले जरूरी है स्वयं से स्वयं का परिचय बढ़ाना और स्वयं को जानने का भरसक प्रयत्न करना,
हम धन और सुख की चाह लेकर धार्मिक क्रियाएं तो करते हैं किन्तु इससे हम धर्म को जानने का मूलत: पुरुषार्थ नहीं कर पा रहे है यह स्वाध्याय से मिलेगा उसमें एकाग्र भाव होना जरुरी है जीवन का आनंद और सुखानुभूति केवल धर्मपुरुषार्थ में ही निहित है। जिस प्रकार नया सामान लाने से पहले हम पुराने सामान को हटाते हैं उस स्थान को साफ और स्वच्छ बनाते हैं स्वयं बैठने से पहले उस स्थान की स्वच्छता को देखते हैं ठीक उसी भांति उसी प्रकार धर्म पुरुषार्थ करने से पहले मन की मलिनता को दूर करना राग द्वेश परिणामों से मुक्ति अति आवश्यक है अंदर के दूषित विचारों को हटाना होगा सुनने का भाव ग्रहण करने की क्षमता से ही ज्ञान धन संग्रहण की क्षमता आ पायेगी।
इस अवसर पर मुनिश्री निर्मद सागर जी ने भी संक्षिप्त उद्बोधन में बताया कि सुनने का धर्म या सुनकर धर्म करना हम सुनते बहुत हैं पर घूमते काम है जिस दिन गुना शुरू हो जाएगा उसी दिन परिवर्तन प्रारंभ हो जाएगा संसारी सुख की चाह में दुख उपाय के करता रहता है तो दुख क्या है हमें कारण जानने की जरूरत है कारण है परिग्रह जो दुख का मूल कारण है अपने जीवन में रुपया पैसा वस्तुओं आदि को जोड़ना ह
हम सुख का अनुभव मान बैठे हैं समान रखना ही नहीं यदि हम आसक्ति का भाव रखते हैं वास्तु ना होते हुए भी वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा बनाए रखते हैं यह भी परिग्रह है पूजा में पढ़ा जाता है तृष्णा की खाई खूब भारी पर रिक्त रही वह रिक्त रही इच्छाएं जितनी पूरी होती जाती हैं उतनी ही बढ़ती जाती हैं इसलिए यह समझना जरूरी है की संतोष के आए बिना सुख की प्राप्ति और पूर्णता नहीं हो सकती लेकिन दान के प्रति आसक्ति का भाव रखना चहिए भगवान जब तक कमाता रहूं तब तक दान करता रहूं। खूब पढ़ते हैं कहूं न सुख संसार में सब जग देखो छान फिर भी मनुष्य के जीवन का मुख्य विषय ही सुख की मृगमारीचका ही है। सुनने का धर्म है एक कान से सुना दूसरे कान से निकाल देना और सुनकर धर्म करने का मतलब है उसे सुनना गुनना और चरित्र में ढालकर वैराग्य की ओरआगे बढ़ते जाना। बता दे कि मुनिश्री निर्मद सागर छुल्लक जी समुन्नत सागर सविनय सागर का संघ का शुक्रवार को प्रातः काल रहली आगमन हुआ, नवयुवक मंडल के सदस्यों ने कड़ता से विहार कराया और बाईपास पर आगवानी भी की ।
मुनि संघ ने कड़ता से सीधा रहली विहार किया और आदिनाथ जिनालय के दर्शन कर धर्मशाला पहुंचे,इसके बाद धर्म सभा को संबोधित किया।
सागर:हम धार्मिक क्रियाएं तो करते हैं किन्तु धर्म का मूलत: पुरुषार्थ नहीं कर पा रहे है,जाने कैसे होगा धर्म पुरुषार्थ… बता रहे है मुनि नीरज सागर
जैन मुनि संघ का रहली हुआ आगमन,हुई भव्य आगवानी
RELATED ARTICLES
Recent Comments
on Hello world!
