रवि की फसल की कटाई और थ्रेशिंग का सीजन चल रहा है,समर्थ किसानों की फसलें खेत से मंडी तक पहुंच गई है, और साधन विहीन किसान अभी तैयारी में लगे हुए है अधिकांश फसलें खेतों में खड़ी हे जिन पर संकट के बादल ही नहीं, वरन दावानल मंडरा रहा हे, आए दिन फसलों में आग लगने की खबर आ रही हे,तमाम सरकारी आदेश होने के बाद कि नरवाई में आग नहीं लगाए फिर भी किसान मान नहीं रहे है।दुखद पहलू यह हे कि किसान ही किसान का दुश्मन बन बैठा हे। दरअसल मूंग की फसल लेने के चक्कर में किसान अपने खेत की नरवाई में आग लगा देते है
गर्मी के सीजन में अंध हवा का जोर रहता हे यही हवा खेत की नरवाई में लगी आग को खेत दर खेत फैला देती हे, जिससे आसपास की खड़ी फसलों खेती में उपयोग होने वाले समान को भी खाक कर देती है। विचारणीय बात हे कि सिर्फ मूंग की फसल लेने के चक्कर में कतिपय किसान नरवाई में आग लगाते है और आसपास के किसानों की साल भर की कमाई, पूंजी को भी खाक करवाने में नहीं हिचकते, कितने किसानों को बैंक का,साहूकार का कर्ज चुकाना हे,बेटी का व्याह करना है,सब सपने स्वाहा हो जाते है।सरकारी तंत्र भोंपू की तरह केवल आदेश निकलकर समझता हे उसके कर्तव्यों की इति हो गई,जबकि होना यह चाहिए कि नरवाई में आग लगाने वालों को संश्रम कारावास होना चाहिए। अपने छोटे फायदे के लिए दूसरे की उम्मीदों पर पानी फेरने वाले किसान सिर्फ दूसरे किसानों की फसलें का ही नुकसान नहीं करते वरन हजारों जीवो को भी जिंदा भस्म कर देते है। माना की फसलों में कीटनाशक का उपयोग मजबूरी हे फसल बचाने के लिए, लेकिन खेत को आग के हवाले करना महापाप है, इतना ही नहीं खेत की नरवाई गर्मी में पशुओं के लिए चारे का काम करती हे,इसी नरवाई से भूषा भी बन जाता है,साथ ही आग में तपने से जमीन की उर्वरकता भी समाप्त होती है।लेकिन यह सब दरकिनार कर अपने स्वार्थ के लिए महापाप के भागीदारों का हिसाब प्रकृति निश्चित रूप से करेगी।क्योंकि प्रकृति का नियम सामान लागू होता है जो करोगे से माई ब्याज के भरना पड़ेगा।यहां कोई सोर्स या भ्रष्टाचार नहीं चलता।
नरवाई की आग में जल रहे अनेक किसानों के अरमान,मानव ही नहीं पशु,पक्षियों सहित खेत भी कराहते आ रहे नजर।
सरकारी तंत्र भोंपू की तरह केवल आदेश निकलकर समझता हे उसके कर्तव्यों की इति हो गई
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