Sunday, October 26, 2025
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एमपी/जहरीले कफ सिरप से बच्चों की मौत: सरकारी निरीक्षण पर उठे गंभीर सवाल,दुर्घटना होने के बाद ही क्यों होती हे जांच..?

योगेश सोनी एडिटर

हाल ही में मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत कुछ राज्यों में एक कफ सिरप पीने से बच्चों की मौत की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। जानकारी के अनुसार, इन मौतों की संख्या 9 (मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा) से अधिक बताई जा रही है। जांच में सामने आया है कि इस कफ सिरप में डायथिलीन ग्लाइकॉल जहरीले तत्व पाए गए, जो किडनी फेल होने का कारण बने। जब कोई भी दवा बिना सरकारी निरीक्षण के बाजार में नहीं बिक सकती, तो ऐसी जानलेवा दवा कैसे बिकती रही? यह घटना भारत में दवा नियंत्रण प्रणाली पर एक गंभीर सवाल खड़ा करती है और यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या दवा कंपनियों और जांच एजेंसियों के बीच कोई मिलीभगत तो नहीं है, जिसके कारण घटिया दवाओं को बिक्री के लिए मंजूरी मिल जाती है।

दवाओं की जांच प्रक्रिया और सरकारी जवाबदेही

भारत में दवाओं की गुणवत्ता को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन और राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) जैसी संस्थाएं जिम्मेदार हैं। सैद्धांतिक रूप से, किसी भी दवा को बाजार में आने से पहले कठोर जांच मानकों को पूरा करना होता है।
लेकिन इस ताज़ा मामले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि गुणवत्ता नियंत्रण की यह प्रक्रिया या तो अपर्याप्त है, या फिर इसमें गंभीर लापरवाही और भ्रष्टाचार की गुंजाइश है।

  • सवाल: अगर दवा बिक्री से पहले ही जांच में सही पाई गई थी, तो बाद में उसमें जहरीले तत्व कैसे मिले?

  • इंतजार क्यों?’ – बड़ा और महत्वपूर्ण सवाल
  • सीधा अर्थ: यह इंगित करता है कि या तो शुरुआती जांच में जानबूझकर ढिलाई बरती गई या फिर बाद में उत्पादन के दौरान घटिया या दूषित कच्चे माल का इस्तेमाल किया गया।
  • दूसरा सवाल- “सरकार इस इंतजार में रहती है कि कोई दुर्घटना हो तब जांच कराएंगे?” – व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर सबसे तीखा प्रहार है।
    दुर्भाग्यवश, कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि नियामक संस्थाएं सक्रिय निगरानी के बजाय प्रतिक्रियाशील कार्रवाई पर अधिक निर्भर करती हैं।
  • सक्रिय जांच की मांग:
  • यह अत्यंत आवश्यक है कि सरकार केवल शिकायत या दुर्घटना होने पर नहीं, बल्कि नियमित रूप से और अप्रत्याशित तरीके से बाजार में बिक रही तमाम दवाओं, विशेष रूप से सरकारी योजनाओं के तहत सप्लाई की जा रही दवाओं के नमूने (सैंपल) लेकर उनकी गहन जांच कराए।
  • जोखिम-आधारित निरीक्षण: सरकार को ऐसी दवा निर्माण इकाइयों की जोखिम-आधारित निरीक्षन प्रणाली मजबूत करनी चाहिए जिनका अतीत में ट्रैक रिकॉर्ड खराब रहा हो या जो संवेदनशील दवाएं (जैसे बच्चों की दवाएं) बनाती हों।
  • पारदर्शिता और कड़ी सजा:
  • दवाओं की जांच रिपोर्ट को अधिक पारदर्शी बनाने और मिलावट/घटिया गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार पाए जाने वालों को कड़ी और त्वरित सजा देने की आवश्यकता है ताकि अन्य कंपनियाँ ऐसी लापरवाही करने से डरें।
    कफ सिरप से हुई बच्चों की मौत केवल एक हादसा नहीं है, बल्कि यह भारतीय दवा नियामक प्रणाली में मौजूद खामियों का स्पष्ट प्रमाण है। यह घटना सरकार को मजबूर करती है कि वह तत्काल प्रभाव से उन सभी दवाओं की जांच करे, जिनके मानव स्वास्थ्य पर गलत असर पड़ने का ज़रा भी संदेह है, न कि किसी और दुर्घटना का इंतजार करे।
    आपका इस विषय पर क्या विचार है कि दवाओं की गुणवत्ता जांच के लिए और क्या ठोस कदम उठाए जाने चाहिए? कमेंट box में अपनी राय लिखे।

Yogesh Soni Editor
Yogesh Soni Editorhttp://khabaronkiduniya.com
पत्रकारिता मेरे जीवन का एक मिशन है,जो बतौर ए शौक शुरू हुआ लेकिन अब मेरा धर्म और कर्म बन गया है।जनहित की हर बात जिम्मेदारों तक पहुंचाना,दुनिया भर की वह खबरों के अनछुए पहलू आप तक पहुंचाना मूल उद्देश्य है।
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