
अकबर इलाहाबादी साहब ने कहा
जब तोप मुकाबिल हो अखबार निकालो
पर नए जमाने तो पता नहीं क्या-क्या मुकाबिल है।
सो अपन नए जमाने के हिसाब से न्यूज वेबसाइट निकाल बैठे।
और यह दसवां साल चल रहा है मल्हार मीडिया का, उसके क्लासिक, विशेष, नियमित पाठकों की बदौलत।
अच्छा लिखने वाले, अच्छे पत्रकार सबको चाहिए। पर वे अपने मन के हों ऐसे पत्रकार चाहिए।
स्वतंत्र पत्रकारों के पास खासकर डिजिटल पत्रकारों के पास रोज कई मेल, व्हाट्सएप आते हैं कभी निवेदन के रूप में, कभी आदेशात्मक लहजों में इसे लगा दें। ये अलग बात है कि जब भी कहीं की बुलावे की सूची एडिट होगी तो सबसे पहले इनके नाम उड़ा दिए जाते हैं, यह कहकर कि उच्च स्तर से चुनिंदा लोगों को कहा गया था या फिर इतनी सँख्या में नाम चाहिये थे तो सूची में नाम नहीं आया,इसलिए सूचना नहीं मिली होगी। ये अलग बात है कि तमाम अधिकारी कर्मचारी नेता मंत्री सब आपको जानते हैं कि आप अच्छा लिखते हैं पर जो बीच वाले हैं उनकी नजर में पता नहीं क्या खटकता है? हर जगह से बाहर करने की कोशिश होती है फिर तकादा ये भी कि फलां खबर लगा दीजिये। पिछले कुछ समय से पत्रकारों में छोटा-बड़ा करके भेद बहुत बोया जा रहा है। मतलब जो मीडिया हाऊस के नौकरीशुदा पत्रकार हैं वे सिस्टम की नजर में बड़े पत्रकार हैं, जो स्वतन्त्र पत्रकार हैं वे छोटे पत्रकार हैं। हालांकि खुद पत्रकारों में ऐसा कुछ विचार नहीं होता। जो दो-चार ऐसे गुमान पाले होते हैं पढ़ने-लिखने वाले लोग ऐसे लोगों पर ध्यान नहीं देते। स्वतंत्र डिजिटल पत्रकारों से स्पेस पूरा चाहिए पर दूर रहकर, बिना सर्वाइवल की चिंता किये इच्छापूर्ति अवतार नजर आते हैं स्वतंत्र पत्रकार। अरे साहब ऐसा कैसे संभव है? सही पत्रकार तो ऑन स्पॉट में ज्यादा यकीन रखता है। खैर! सच कहूं तो ये सब इतना टाइप्ड, टेम्परेरी हो गया है कि जब भी कुछ बदलाव हुआ तो यह सब होता ही है। अपने को फर्क नहीं पड़ता आदत ही पड़ चुकी है। काम करते हैं और अढ़कर ही नहीं बढ़-चढ़कर करते हैं।हम छोटे पत्रकार ही सही सिस्टम की नजर में पर हैं तो पत्रकार ही।
फिर कहा भी तो गया है
जहां काम आवे सुई का करे तलवार।
तमाम पत्रकारिता को समर्पित पत्रकारों को समर्पित।
