बुंदेलखंड की लोक संस्कृति में हर त्यौहार को अपने तरीके से मनाने की अनूठी परंपराएं प्रचलित है. इसी तरह सकरात के पर्व को भी बुंदेलखंड में एक अलग अंदाज से मनाया जाता है
बुंदेलखंड की लोक संस्कृति में शक्कर के घोल से बनी हुई एक मिठाई होती है. जो मकर संक्रांति के अवसर पर ही तैयार की जाती है. मकर संक्रांति के पूजन में इसका विशेष महत्व होता है. शक्कर की मिठाई को महाभारत के भीष्म पितामह से भी जोड़ा जाता है. शक्कर के घोल से अलग-अलग आकृतियों के गढ़िया गुल्ला बनाए जाते हैं

बुंंदेलखंड में मकर संक्रांति और गढ़िया गुल्ला: मकर संक्रांति को भारत देश में अलग-अलग परंपराओं और तरीके से मनाया जाता है. इसी तरह से बुंदेलखंड में सकरात के पर्व पर तिल को हल्दी के साथ पीसकर शरीर पर लगाने के बाद स्नान करते हैं बुंदेलखंड में गढ़िया गुल्ला चढ़ाने की परंपरा है. यह बुंदेलखंड का ऐसा व्यंजन है, जो सिर्फ मकर संक्रांति के अवसर पर बताशा बनाने वाले हलवाईयों द्वारा तैयार किया जाता है.

गढ़िया गुल्ला की कंगन: गढ़िया गुल्ला को शक्कर के घोल से तैयार किया जाता है. सबसे पहले शक्कर का घोल तैयार किया जाता है और गढ़िया गुल्ला बनाने के लिए उसे लकड़ी के बनाए हुए सांचों में ढाला जाता है. जब शक्कर का घोल सूख जाता है तो सांचों के अनुसार आकृति तैयार हो जाती है. गढ़िया गुल्ला की कंगन, घोड़ा, हाथी और उसके अलावा कई तरह की आकृतियां बनाई जाती हैं. हालांकि अब ये परम्परा धीरे- धीरे कमजोर होती जा रही है. एक समय था जब मकर संक्रांति से काफी पहले हलवाई गढ़िया-गुल्लों को तरह-तरह से आकार देना शुरू कर देते थे. शक्कर से बनी मिठाई होने के कारण बच्चे भी पसंद करते थे और ग्रामीण क्षेत्रों में मकर संक्रांति पर रिश्तेदारों के यहां गड़िया गुल्ला भिजवाने का रिवाज भी था. जो धीरे-धीरे खत्म हो रहा है.

बुंदेलखंड में पीतल के बड़े-बड़े वर्तनों में गढ़िया गुल्ला भरकर बेटी की ससुराल भेजी जाती थी, जिसे पठौनी कहा जाता था, जो अब धीरे धीरे कम होती जा रही है. बुंदेलखंड के अलावा मालवा, महाराष्ट्र में भी गढ़िया गुल्ला का मिठाई बेची जाती है, जहां इन्हे खिलौना नाम दिया गया है.
इसके अलावा संकरात पर्व पर गेंहू के आटे ज्वार बेसन चावल तिल के लड्डू खुरमा बतिया आदि पकवान बनाये जाते है
