Monday, December 23, 2024
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जन्मकुडंली में सन्त बनने का ज्योतिषीय विश्लेषण

सन्त एक ऐसी उपाधि है जिसे सुनते ही आत्मा श्रद्धा से नतमस्तक हो जाती है, मन-मस्तिष्क में एक ऐसा त्यागमय स्वरुप उभर कर आता है जिसे ब्रह्म कहो, ईश्वर कहो या सन्त कहो एक ही बात है ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि सच तो यह है कि जो भगवान का स्वरुप है वही सन्त का स्वरुप है, सन्त की उपाधि भी भिन्न-भिन्न होती है कुछ जातक अपने पूर्व पुण्यो के कारण सन्त बनते है तो कुछ जातको को सन्त की उपाधि उत्तराधिकार के रूप में भी प्राप्त होती है। कोई संत गृहत्यागी होता है तो कोई गृहस्थ में रहकर भी सन्त जीवन पालन करता है। कुछ जातक ऐसे भी होते है जिनके मन में बचपन से ही वैराग्य की भावना वास करती है। जिसके कारण वे ब्रह्मचर्य का पालन करते है और आजीवन ब्रह्मचारी रहते हुए सन्त कहलाते है। सन्त बनने के लिए कुंडली के ग्रह, भाव और परिस्थितिया उत्तरदायी होती है।
सन्त बनाने वाले उत्तरदायी ग्रह


ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि संत बनने के लिए धर्म का कारक गुरु, वैराग्य का कारक शनि ग्रह, मोक्ष का कारक केतु मुख्य रूप से अपनी भूमिका निभाते है। इन्ही के साथ मन का कारक चंद्र और आत्मा का कारक सूर्य भी सन्त जीवन को प्रभावित करते है। साथ ही लग्नेश, पंचमेश और नवमेश सन्त जीवन को प्रज्वलित करते है। यदि इन ग्रहो का सम्बन्ध द्वाददेश से भी हो तो निश्चित ही जातक में वैराग्य की भावना बलवान होगी क्योंकि वैराग्य और सन्त जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति ही होता है जो कि कुंडली का द्वादश भाव प्रदर्शित करता है। गुरु धर्म का प्रबल कारक और सत्वगुणी होने के कारण जातक में धार्मिक प्रेम, आध्यत्म और सात्विक गुणों को प्रोत्साहित करता है और सन्त स्थिति जैसा वातावरण भी प्रदान करता है। शनि वैराग्य और त्यागमय जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करता है। यहाँ तक पहुचने के लिए वह काम, क्रोध, मोह, लोभ, माया आदि अवगुणों का त्याग करता है यही त्याग जातक को परमपिता परमेश्वर की शरण में ले जाता है। शनि के प्रभाव से जातक अपने सांसारिक और भौतिक जीवन को छोड़कर त्यागमय जीवन जीने के लिए उघत होता है। इसी तरह चंद्रमा की स्थिति जातक के मन की सुदृढ़ता और मस्तिष्कीय विचारो की परिचायक है। सूर्य की तेजस्विता आत्मा को सुदृढ़ता और बल प्रदान करती है, जो कि इस जीवन को जीने के लिए परम आवश्यक है। मनुष्य का अंतिम लक्ष्य मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति है। मोक्ष का कारक ज्योतिष में केतु को माना गया है लेकिन शनि और गुरु की तरह नही, इस सम्बन्ध में शनि गुरु की भूमिका स्पष्ट होने पर ही इसका विचार करना चाहिए। ग्रहो के बाद कुंडली के भावो पर प्रकाश डालना भी आवश्यक है। कुंडली के सभी भावो का अपना महत्व है।

Yogesh Soni Editor
Yogesh Soni Editorhttp://khabaronkiduniya.com
पत्रकारिता मेरे जीवन का एक मिशन है,जो बतौर ए शौक शुरू हुआ लेकिन अब मेरा धर्म और कर्म बन गया है।जनहित की हर बात जिम्मेदारों तक पहुंचाना,दुनिया भर की वह खबरों के अनछुए पहलू आप तक पहुंचाना मूल उद्देश्य है।
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