खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए सागर जिले में किसानों के द्वारा लगातार प्रयोग देखने को मिल रहे हैं। किसान अब पारंपरिक खेती के साथ औषधीय फसलों की खेती करने लगे है।
आज हम बात कर रहे हैं रहली विकासखंड के ग्राम रजवास के युवा किसान प्रशांत पटेल की। जिनके द्वारा अश्वगंधा की खेती शुरू की गई है, उनका कहना है कि पारंपरिक फसलें गेहूं, चना, मसूर की अपेक्षा इसमें तीन से चार गुना फायदा होने की उम्मीद है। पिछले साल उन्होंने मात्र 60 डेसिमल जगह में अश्वगंधा का उत्पादन किया था जिसमें उन्हें 96 हजार का मुनाफा हुआ। इस साल चार एकड़ जगह में अश्वगंधा की बुवाई की है और फसल भी अच्छी है. हमारे साथ अब आसपास के और भी किसान छोटी-छोटी जगह में इस पर हाथ आजमा रहे हैं।
किसान ने बताया कि औषधीय फसलों की खेती करने में उनके गांव के युवा किसान रुचि ले रहे है और अब पच्चीस से ज्यादा किसानों ने अश्वगंधा की फसल लगाई है ।
युवा किसान प्रशांत पटेल बताते हैं कि बाप दादाओं के समय से ही गेहूं, चना ,मसूर ,मटर की खेती करते आ रहे हैं, जिसमें जैसे तैसे करके घर खर्च ही चल पाता है लेकिन कुछ साल पहले मैंने लहसुन की खेती शुरू की थी जिसमें अच्छा भाव मिलने से दूसरी फसलों का उत्पादन करने की हिम्मत मिली, क्योंकि अगर एक एकड़ में गेहूं की खेती करें तो उसमें अधिकतम 50000 का ही गेहूं निकाल पाता है लेकिन अश्वगंधा की खेती में एक एकड़ में तीन चार गुना अधिक दाम मिलने की उम्मीद रहती है।
अश्वगंधा की खेती के लिए इन किसानों ने सोशल मीडिया की सहायता ली किसान प्रदेश के नीमच जाकर बीज लेकर आए थे, और फिर कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारियों से सलाह लेकर बुवाई की, फिर समय-समय पर सलाह लेकर कार्य करते रहे जिसमें उन्हें अच्छा मुनाफा मिला हैं, किसानों का कहना है कि अगर किसान खेती से आमदनी करना चाहते हैं तो उन्हें थोड़ा-थोड़ा करके पारंपरिक फसलों को छोड़कर दूसरी चीजों पर भी ध्यान देना चाहिए ।
अश्वगंधा औषधि फसल है जिससे कई तरह की दवाइयां तैयार की जाती हैं, फिलहाल इसे बेचने के लिए किसानों को नीमच या मंदसौर मंडी ही ले जाना पड़ता है, इस फसल के जड़ में पाउडर निकलता है ।
अश्वगंधा को खेत से सीधा निकलवा कर उसकी जड़ को तोड़कर ग्रेडिंग कर मंडी ले जाना पड़ता है। अभी मंडी में अश्वगंधा का अच्छा भाव मिल रहा है।
