सागर जिले के देवरी में स्थित देव श्री खंडेराव मंदिर है, जहां अगहन मास में 9 दिनों का अग्निकुंड मेला भरता है। यह मंदिर करीब 4 सौ साल पुराना है। यहां पर मनोकामना पूर्ति के लिए भक्त दहकते अंगारों पर निकलकर भगवान का धन्यवाद करते हैं। अगहन मास की षष्ठी यानि चंपा छठ से भरने वाला मेला पूर्णिमा तक चलता है। जिसकी तैयारियां तेज हो गयी है। यहां इस साल 140 अग्निकुंड बनाए जा रहे हैं। जिनमें से हजारों की संख्या में भक्तगण निकलेंगे।
श्री देव खंडेराव ने सपने में दिए थे राजा को दर्शन
देवरी में स्थित देव श्री खंडेराव मंदिर का अगहन सुदी चंपा षष्ठी से शुरू होकर पूर्णिमा तक भरने वाला 9 दिवसीय मेला बुंदेलखंड में काफी प्रसिद्ध है। मंदिर में लोगों की अपार आस्था है और यहां होने वाला चमत्कार देखने लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं। दरअसल इस मेले के दौरान मनोकामना पूर्ति होने पर लोग दहकते अंगारों से भरे अग्निकुंड से निकलते हैं। देवरी के तिलक वार्ड में स्थित 16 वीं शताब्दी का प्राचीन देवश्री खंडेराव मंदिर में मेला करीब 400 साल से चला आ रहा है। कहा जाता है कि देवरी जैसा मेला महाराष्ट्र में जाजौरी में भरता है। जहां देव श्री खंडेराव का मंदिर स्थित है।
मेले की शुरुआत राजा रसाल जाजोरी ने की थी और उन्होंने ही मंदिर का निर्माण कराया था। दरअसल राजा का पुत्र एक बार बीमार हो गया था,तब उन्होंने देव श्री खंडेराव से मनोकामना मांगी थी। राजा को सपने में देव श्री खंडेराव ने दर्शन दिए और कहा कि मंदिर में अग्निकुंड से नंगे पैर निकलोगे,तो उनकी मनोकामना पूरी होगी। राजा रसाल ने सपने में मिली प्रेरणा अनुसार काम किया और उनका बेटा स्वस्थ हो गया। तब से परम्परा लगातार चली आ रही है।
भगवान शिव का अवतार हैं देव श्री खंडेराव
ऐसा अनुमान है कि ये मंदिर 15-16 वीं शताब्दी के दौरान निर्मित हुआ है। जिसमें देव श्री खंडेराव घोडे पर सवार है और अर्धांग रूप में माता पार्वती विराजमान है। भगवान देव श्री खंडेराव को शिव का अवतार मानते हैं। देवरी के मंदिर के गर्भगृह में प्राचीन शिवलिंग भी स्थित है और मंदिर के बाहर नंदी की प्रतिमा भी स्थित है। मंदिर परिसर में एक विशाल बावडी और देवी देवताओं की भी प्रतिमाएं विद्यमान है। मंदिर के गर्भगृह में बने शिवलिंग को स्वयं भू शिवलिंग बताया जाता है। चंपा षष्ठी के दिन जैसे ही मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर ठीक 12 बजे भगवान सूर्य का प्रकाश पुंज पडता है। तो सभी श्रृद्धालु मंदिर के सामने बनाए गए अग्नि कुंडों में पूजा-अर्चना के बाद दोनों हाथों में हल्दी लेकर दहकते अंगारों से निकलना शुरू करते हैं। जय हो श्री खंडेराव के जयकारा लगाते हुए आस्था से सराबोर भक्तगण बिना डरे दहकते अंगारों से दो बार निकलते हैं।
इस साल खोदे जा रहे है 140 अग्निकुंड
मेले को लेकर मंदिर प्रबंधन ने तैयारियां शुरू कर दी है। इस बार मंदिर में 140 अग्निकुंड खोदे जा रहे हैं। मंदिर प्रबंधन ने बताया कि जिन भक्तों को अग्निकुंड से निकलना होता है,उन्हें पहले पंजीयन करवाना होता है। इस साल एक हजार से ज्यादा लोग पंजीयन करा चुके हैं। साल दर साल पंजीयन कराने वाले भक्तों की संख्या बढ रही है। इसलिए मंदिर परिसर में मेले के दौरान अग्निकुंड की भी संख्या बढानी पड रही है। मंदिर परिसर में विशेष साज सज्जा के साथ 140 अग्निकुंड इस बार खोदे जा रहे हैं। मंदिर के पुजारी परिवार की पांचवी पीढी के मोहित वैद्य और सदाशिव राव वैद्य ने 2 दिसंबर को गणपति पूजन, देव आवाहन और रुद्राभिषेक किया और उसके बाद अग्निकुंड खोदने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है। मेला 7 दिसंबर से 15 दिसंबर तक चलेगा।
महिलाएं लेती है बढ चढकर हिस्सा
मुख्य पुजारी नारायण राव वैद्य ने बताया कि अग्निकुंड में निकलने वाले भक्तों में महिलाओं की संख्या ज्यादा होती है। कुंवारी युवतियों के अलावा महिलाएं सबसे ज्यादा पंजीयन करवाती है। इस बार सबसे अधिक पंजीयन आदिवासी महिलाओं ने कराया है।