छिंदवाड़ा कफ सिरप विवाद पर सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रियाएं आक्रोश और सिस्टम पर गहरे सवाल खड़े करती हैं। बच्चों की मौत की दुखद घटना ने स्वास्थ्य सेवा से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर जनता के गुस्से को उजागर किया है।
लोगों की प्रतिक्रियाओं के मुख्य बिंदु
सोशल मीडिया पर आ रही प्रतिक्रियाओं में मुख्य रूप से निम्नलिखित बातों पर ज़ोर दिया जा रहा है:
- डॉक्टर और मेडिकल स्टोर के गठजोड़ पर सवाल
- व्यंग्यात्मक लहजा: लोग डॉक्टर और मेडिकल स्टोर संचालकों के बीच कथित “साडू-साडू” (गठजोड़/तालमेल) को लेकर व्यंग्य कर रहे हैं। वे आरोप लगाते हैं कि डॉक्टर अपने प्रिस्क्रिप्शन में इस तरह से लिखते हैं कि जिससे ब्रांडेड दवाइयां खरीदने के लिए मजबूर होना पड़े, जो मेडिकल स्टोर और डॉक्टर दोनों को फायदा पहुंचाता है।
- अवैध गतिविधियां: फेसबुक यूजर की प्रतिक्रिया में स्पष्ट रूप से डॉक्टरों द्वारा ब्रांड नेम से प्रिस्क्रिप्शन लिखने, कमीशन लेने, और यहां तक कि क्लिनिक में बिना लाइसेंस दवा का स्टोर चलाने जैसे गंभीर आरोपों का ज़िक्र है।
- पूरे सिस्टम पर सवाल
- जनता का सबसे बड़ा गुस्सा उस “सिस्टम” पर है, जो तमाम कमियों के बावजूद ऐसी गतिविधियों को इजाजत देता है।
- बच्चों की मौत के बाद डॉक्टर की गिरफ्तारी और दवा कंपनी पर FIR (रिपोर्ट में ज़हरीले केमिकल डाईएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की पुष्टि के बाद) होने के बावजूद, लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर शुरुआत में ही दवा की गुणवत्ता की जांच क्यों नहीं हुई।
- प्रशासन द्वारा शहर में बढ़ते मेडिकल स्टोर और पैथोलॉजी लैब की जांच करने और उन्हें नियंत्रित करने की मांग की जा रही है, जो आम जनता को लूटने का काम करते हैं।
- ब्रांडेड दवाओं और कमीशनखोरी पर निशाना
- प्रतिक्रियाओं में यह साफ कहा गया है कि कुछ डॉक्टर अपने प्रिस्क्रिप्शन पावर का इस्तेमाल दवा व्यापार की दिशा और दशा तय करने के लिए करते हैं, जिससे महंगी ब्रांडेड दवाइयों की बिक्री को बढ़ावा मिलता है।
- लोगों का मानना है कि यह लूट वहीं से शुरू होती है, जब नगर के मेडिकल स्टोर वाले हफ्ते में किसी डॉक्टर को बुलाते हैं और मरीज की जाँचें, इलाज और दवाइयां उसी मेडिकल से शुरू हो जाती हैं।
- गरीब वर्ग की मजबूरी
- एक यूजर ने गरीब आदमी की मजबूरी को भी उठाया है, जो डॉक्टर की महंगी फीस, महंगी जाँच और फिर हजारों की दवाई की जगह दस रुपये की पुड़िया (यानी सीधे मेडिकल स्टोर से सस्ती दवा) में ठीक हो जाता है। यह बताता है कि महंगा इलाज और सिस्टम की लूट गरीब को सरकारी अस्पताल की जगह सीधे मेडिकल स्टोर पर जाने को मजबूर करती है, जिससे गलत दवा मिलने और साइड इफेक्ट्स (जैसे लीवर कमजोर होना) का खतरा बढ़ जाता है।
- कम पढ़े लिखे लड़कों द्वारा मेडिकल स्टोर पर दवाइयां देने का मुद्दा भी उठाया गया है, जो गलत दवा देने का कारण बन सकता है।
निष्कर्ष: तिलमिलाहट क्यों?
फेसबुक यूजर का यह सवाल कि “अच्छे काम के लिए जब ‘धरती के भगवान’ बनने का शौक है तो बुरे काम के लिए ‘राक्षस या दानव’ का टैग मिलने पर इतनी तिलमिलाहट क्यों?” यह स्पष्ट करता है कि छिंदवाड़ा की दुखद घटना ने स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों और नियामक सिस्टम दोनों की जवाबदेही पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
लोग केवल कुछ व्यक्तियों को नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार, लचर नियंत्रण और कमीशनखोरी के उस पूरे ढांचे को दोषी मान रहे हैं, जिसकी वजह से जानलेवा ज़हरीली दवा बच्चों को दी गई और कई मासूमों की जान चली गई।
