ज्योतिष शास्त्र में सप्तम स्थान विवाह का होता है, हिंदू धर्म में 8 प्रकार के विवाह माने गये है ब्रह्मा विवाह को सर्वश्रेष्ट तथा पैशाच विवाह को निकृष्ट विवाह की श्रेणी में रखा गया है। इन में गंधर्व विवाह भी विवाह का एक प्रकार है। गंधर्व विवाह को ही प्रेम विवाह कहा जाता है। प्रेम विवाह में वर कन्या अपनी मर्जी से विवाह करते है| ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि जन्म कुंडली का सप्तम स्थान विवाह स्थान होता है, जब सप्तम या सप्तमेष का सम्बंध 3, 5, 9, 11 और 12वें भाव के मालिक के साथ बनता हैं तब जातक प्रेम विवाह करता है। इन सम्बंधों में दृष्टी युति के अतिरिकत त्रिकोण तथा केंद्र सम्बंधों को भी महत्वपूर्ण माना जाता है। सप्तमेश यदि पंचम स्थान के मालिक के साथ 3, 5 ,7, 11 और 12वें भाव में स्थित हो तो जातक प्रेम विवाह अवश्य करता है। पंचम स्थान प्रेम सम्बन्ध तथा मित्रों का माना जाता है ऐसे में सप्तमेष का सम्बंध पंचमेश से हो जाये तो व्यक्ति के प्रेम विवाह करने के योग बनते है.!!
कुंडली के इस योग में होती है लव मैरिज
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Yogesh Soni Editorhttp://khabaronkiduniya.com
पत्रकारिता मेरे जीवन का एक मिशन है,जो बतौर ए शौक शुरू हुआ लेकिन अब मेरा धर्म और कर्म बन गया है।जनहित की हर बात जिम्मेदारों तक पहुंचाना,दुनिया भर की वह खबरों के अनछुए पहलू आप तक पहुंचाना मूल उद्देश्य है।
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