प्रत्येक व्यक्ति के अपने सपने होते है और व्यक्ति उसी अनुसार जीवन में उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होता है।लेकिन अधिकांश लोग अपने मुकाम को प्राप्त नहीं कर पाते कुछ प्रतिशत देर से परिणाम को प्राप्त कर पाते है।या परिणाम के करीब करीब पहुंच कर संतुष्ट हो जाते है।लेकिन दो पक्ष और हे जिनमें एक वह जो 98 की गिनती पूरी करने के बाद आखिरी सीढ़ी पर सांप सीढ़ी के खेल की तरह 99 पर लुढ़क कर एक पर आ जाते है,उन्हें फिर एक दो से गिनती गिनना पड़ती है दूसरे वह जो शुरू होते ही बुलंदी पर छलांग लगा जाते है। हर व्यक्ति इन बातों पर निश्चित विचार करता है उनके उत्तर खोजता है और अपने आप को अथवा किस्मत को दोषी मानकर आत्म संपर्पण कर लेता है। आज इसी विषय पर यह आलेख है जो लाखों लोगों को सहज ही जीवन भर जो सही उत्तर खोजने पर नहीं मिलता उसे सहज उपलब्ध कराने की कोशिश है।
इन परिस्थिति को ज्ञानी जन अपने मतानुसार फलश्रुति बताते है।कोई कहता है कर्म से प्राप्त फल है,लेकिन यहां तर्क है कि कर्म करने के बाद भी अप्राप्त क्यों होता है तो फिर दूसरा कह देता है कि किस्मत से प्राप्त है तो फिर भी तर्क हे फिर कर्म क्यों करें।तीसरे लोग बड़े विरले होते है जो कर्म और समीकरण को प्रधानता देते हे कि उसके पक्ष में समीकरण थे।अब यह बात हजम नहीं होती है।ऐसे कैसे समीकरण जी जिनका आधार किसी को पता नहीं और समीकरण के नाम पर आत्म संतुष्ट कहे या दिल पर पत्थर रखकर मान लेने में भलाई समझ लेते है।तो शुरू करते है हाल ही में हमारे मित्र प्यारे मोहन किस्मत की प्रशंसा में गुणगान किए जा रहे थे। कुछ में स्वयं हैरान था कि सचमुच मुकद्दर बड़ा होता है। इसी उधेड़बुन में एक नेताजी जी से चर्चा के दौरान उनका मंतव्य जानने कहा कि किस्मत बड़ी चीज होती है।कुछ देर नेताजी सोचते रहे लेकिन भीड़ से घिरे नेताजी को अपनी बात का वजन बढ़ाने कहने लगे किस्मत कुछ नहीं समीकरण बलवान होता है।लेकिन इस जवाब से अपन को संतुष्टि नहीं मिली और तर्क करना उचित नहीं समझा ।उस समय तो नेताजी के सम्मान के कुछ नहीं कहा लेकिन सही उत्तर की खोज में निकल पड़े जी भर कर गूगल गुरु को सर्च किया और परिचित गुरुओं से व्यक्तिगत और फोन पर संपर्क कर जवाब चाहा लेकिन सभी ने वही रटे रटाए उत्तर बताए।अचानक सद्गुरु प्रेमानंद जी का एक वीडियो सामने आया जिसमें उन्होंने पूरे विधिविधान से समझाया जो पूर्ण संतुष्ट कर देने वाला था।सुधि पाठकों की जानकारी के लिए उत्तर प्रस्तुत है।तो शुरू करते है गीता में श्री कृष्ण जी ने कहा सभी अपने कर्मों का फल भोगते है जिसका सीधा अर्थ हे जो भी प्राप्त है कर्म के बीज से फल मिला है।हर व्यक्ति के कर्म तीन जगह विभाजित होकर स्टॉक में रहते है। एक संचित कर्म,जिनसे कुछ कर्म से प्रारब्ध बनता है जिसे किस्मत,मुकद्दर,तकदीर आदि आदि कहा जाता है।तो अनेक जन्मों के संचित कर्म के बड़े स्टॉक से कुछ अच्छे और बुरे कर्म मिलकर शरीर बनता है और जीवन में क्या मिलेगा यह भी शरीर निर्माण से पहले तय हो जाता है। ऐसा नहीं है कि इस जन्म के कर्म का फल नहीं मिलेगा।यह अगले जन्म का मुकद्दर भी लिखते और पुण्य कर्म पिछले बुरे कर्म को नष्ट करते है।अब सवाल आता है कि इस जन्म के कर्म का फल कब मिलता है तो उसका उत्तर है, जब प्रारब्ध के बुरे कर्म नष्ट हो जाते है तब उनका फल मिलना शुरू हो जाता है।यदि अच्छे कर्म किए तो प्रारब्ध के बुरे कर्म का फल नष्ट कर आगे अच्छा परिणाम मिलेगा और बुरे किए तो पिछले पुण्य नष्ट कर पुराने और नए बुरे कर्म मिलकर जीवन बर्बाद कर देते है और इतना ही नहीं वर्तमान और अगला जीवन भी प्रभावित होता है।अब सवाल आता है समीकरण का तो उदाहरण के लिए समझें कि जब प्रकृति में वृक्षों पर पुष्प पल्लवित होने होते है तो बहार आना पहले से शुरू हो जाती है।ठीक ऐसे ही जब प्रारब्ध का अच्छा या बुरा फल मिलने की बारी आती है तो प्रकृति पहले से उसकी तैयारी शुरू कर देती है वैसी परिस्थिति,वैसा संग,वैसा माहौल बनना शुरू हो जाता है।इसे ही समीकरण कहते है।अंततः कहने का तात्पर्य प्रत्येक फल का बीज कर्म है। उसे लोग अपनी सुविधा अनुसार तरह तरह से व्याख्या करते है पर होता वही है जो पूर्व निर्धारित है।व्यक्ति खामख्वां अपने को होशियार मानकर खुद को भाग्य विधाता बनने का भ्रम पाल लेता है।और फिर एक बार वही कहेंगे जब व्यक्ति खुद को खुद समझने की भूल करने लगता है तो प्रकृति जो सारे समीकरण बनाती है उसे मिटाने में देर नहीं लगती।
शेष शुभ
सांप सीढ़ी की तरह खेल है जिंदगी।जीवन में उन्नति के तीन कारक कर्म भाग्य और समीकरण में किसका अधिक महत्व।
RELATED ARTICLES
Recent Comments
on Hello world!
