नेताओं द्वारा किसी भी जगह पर अन्य किसी जगह के लिए भवन निर्माण का भूमिपूजन करना वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार उचित नहीं माना जाता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, भूमिपूजन एक महत्वपूर्ण धार्मिक और वैज्ञानिक प्रक्रिया है जो उस विशेष भूमि पर की जाती है जहाँ निर्माण कार्य शुरू होना है।
वास्तु के अनुसार भूमिपूजन की आवश्यकता और नियम
वास्तु शास्त्र में भूमिपूजन का मुख्य उद्देश्य और नियम निम्नलिखित हैं:
- वास्तु पुरुष की अनुमति: यह पूजा वास्तु पुरुष (भूमि के देवता) से निर्माण कार्य शुरू करने की अनुमति लेने और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए की जाती है, ताकि निर्माण कार्य बिना किसी बाधा के पूरा हो और उसमें रहने वालों को सुख-समृद्धि मिले।
- सार्वजनिक औपचारिकता: यह अक्सर समय की कमी या एक ही समय में कई परियोजनाओं का उद्घाटन करने के लिए किया जाता है।
- वास्तु की दृष्टि से: यदि उस स्थान पर वास्तविक अनुष्ठान नहीं किया जाता है और केवल प्रतीकात्मक क्रिया होती है, तो वास्तु शास्त्र के अनुसार यह अधूरा माना जाएगा। भवन निर्माण शुरू करने से पहले निर्माण स्थल पर विधिवत भूमिपूजन करना ही वास्तु सम्मत और शुभ माना जाता है।
संक्षेप में, भले ही सार्वजनिक और प्रतीकात्मक भूमिपूजन किया गया हो, वास्तु और पारंपरिक मत यही है कि निर्माण शुरू करने से पहले उस विशिष्ट भूमि पर एक योग्य पंडित द्वारा सभी नियमों का पालन करते हुए भूमिपूजन का अनुष्ठान अवश्य किया जाना चाहिए। - यह एक बहुत ही विशिष्ट और सांस्कृतिक प्रश्न है, जिसका उत्तर धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताओं के आधार पर दिया जा सकता है।
- परंपरागत रूप से, भवन निर्माण का भूमि पूजन उसी स्थान पर करना आवश्यक माना जाता है जहाँ भवन का निर्माण होने वाला है। इसके पीछे मुख्य कारण और दुष्परिणाम की मान्यताएँ इस प्रकार हैं:
- मान्यताओं के अनुसार संभावित दुष्परिणाम (Negative Consequences according to Beliefs)
- यदि भूमि पूजन किसी अन्य स्थान पर किया जाता है और मुख्य निर्माण स्थल पर नहीं, तो धार्मिक मान्यताओं के अनुसार निम्नलिखित दुष्परिणाम हो सकते हैं:
धन और स्वास्थ्य की हानि
- कुछ मान्यताओं के अनुसार, विधि-विधान में चूक होने पर, भवन के निवासियों को आर्थिक तंगी, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ या बार-बार दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है। इसे ‘अशुभ आरंभ’ माना जाता है।
- निर्माण कार्य में रुकावटें (Obstacles in Construction):
- गलत शुरुआत के कारण निर्माण कार्य में अनावश्यक देरी, विवाद, या बार-बार टूट-फूट हो सकती है, जिससे बजट और समय दोनों प्रभावित होते हैं।
सही तरीका क्या है?
सही विधि यह है कि भूमि पूजन हमेशा उस भूमि के ईशान कोण (North-East corner) में या मध्य भाग में किया जाए जहाँ भवन का निर्माण होना है। ऐसा करने से ही उस विशेष भूमि को पूजा का लाभ मिलता है और निर्माण कार्य निर्विघ्न संपन्न होता है।
