हर साल जब बाढ़ आती है, तो यह सवाल उठना लाज़मी है कि प्रशासन और सरकार नदी किनारे अतिक्रमण होने ही क्यों देते हैं? यह सिर्फ प्राकृतिक आपदा का मामला नहीं है, बल्कि यह एक मानवीय और राजनीतिक मुद्दा भी है जो हर साल सैकड़ों लोगों की जान और संपत्ति का नुकसान करता है।
नदी किनारे अतिक्रमण के पीछे कई कारण होते हैं। सबसे पहला और बड़ा कारण है वोट बैंक की राजनीति। कई बार राजनेता गरीबों और बेघर लोगों को वोट के बदले अनधिकृत बस्तियां बसाने की छूट दे देते हैं। ये बस्तियां बाढ़ के पानी के सीधे रास्ते में होती हैं, जिससे हर साल भारी तबाही होती है।
दूसरा पहलू है बाढ़ आपदा फंड का खेल। हर साल बाढ़ आने पर राहत और पुनर्वास के लिए सरकार भारी-भरकम फंड जारी करती है। यह फंड कई बार सही लोगों तक नहीं पहुंच पाता और इसमें भ्रष्टाचार की संभावना भी रहती है। कुछ लोगों का मानना है कि जानबूझकर अतिक्रमण को नज़रअंदाज़ किया जाता है ताकि हर साल आपदा के नाम पर फंड जारी होता रहे। यह एक गंभीर आरोप है, लेकिन अक्सर ऐसी स्थितियाँ देखने को मिलती हैं।
इसके अलावा, प्रशासनिक लापरवाही भी एक बड़ा कारण है। नगर निगम और स्थानीय प्रशासन को अतिक्रमण हटाने के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए, लेकिन अक्सर ऐसा नहीं होता। कानूनी प्रक्रिया धीमी होती है और राजनीतिक दबाव के कारण भी अधिकारी कार्रवाई करने से बचते हैं।
यह समझना ज़रूरी है कि यह समस्या केवल एक-दो विभागों की नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था की है। जब तक सरकार और प्रशासन मिलकर इस पर कोई ठोस नीति नहीं बनाते और राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाते, तब तक हर साल बाढ़ से होने वाली तबाही को रोकना मुश्किल होगा।
हलकी अतिवृष्टि , बादल फटना जैसी घटनाएं प्राकृतिक हे और इनसे होने वाली बर्बादी रोकना मानव के बस की बात नहीं हे। जैसे कि हाल ही में विभिन्न प्रदेशों में बाढ़ के चलते गांव के गांव डूब गए। लेकिन सामान्य रूप से हर साल बाढ़ आती हे और नदी किनारे अतिक्रमण किए लोग हर साल प्रभावित होते है। इसलिए जहां तक कंट्रोल किया जा सके होना चाहिए जहां कंट्रोल के बाहर मतलब प्राकृतिक घटना हे उसे तो कोई रोक नहीं सकता।
