प्रत्येक वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गोस्वामी तुलसीदास जयंती मनाई जाती है। यह दिन हिन्दी साहित्य के उस महान नक्षत्र को समर्पित है, जिन्होंने अपनी अनुपम रचनाओं से भारतीय संस्कृति और जनमानस को गहराई से प्रभावित किया। वर्ष 2025 में तुलसीदास जयंती 31 जुलाई को मनाई जाएगी।
गोस्वामी तुलसीदास: एक संक्षिप्त जीवनी
गोस्वामी तुलसीदास का जन्म संवत 1589 (कुछ स्रोतों के अनुसार 1532 ईस्वी) में उत्तर प्रदेश के राजापुर नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था। इनके बचपन का नाम रामबोला था, क्योंकि जन्म लेते ही इनके मुख से ‘राम’ शब्द निकला था। जन्म के समय ही कुछ ऐसी घटनाएं हुईं, जो उनके महापुरुष होने का संकेत देती थीं।
तुलसीदास जी का विवाह दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ था। अपनी पत्नी से उनका अत्यधिक लगाव था। एक बार, जब रत्नावली अपने मायके गईं, तो तुलसीदास उनसे मिलने के लिए रात के समय उफनती नदी को भी पार कर उनके पास पहुंच गए। रत्नावली ने उनके इस मोह पर उन्हें फटकारते हुए कहा, “लाज न आई आपको दौरे आएहु नाथ। अस्थि चर्ममय देह मम, तापर जितनी प्रीति। तिसु आधो जो राम पर, तो भवसागर तरि जाय।” इस फटकार ने तुलसीदास के जीवन की दिशा ही बदल दी। पत्नी के इन शब्दों से उन्हें वैराग्य उत्पन्न हुआ और वे भगवान राम की भक्ति में लीन हो गए।
उन्होंने गुरु नरहरिदास और शेष सनातन से शिक्षा ग्रहण की। तुलसीदास ने अपना अधिकांश जीवन वाराणसी (काशी) और अयोध्या में बिताया। वाराणसी में गंगा नदी पर स्थित प्रसिद्ध तुलसी घाट उन्हीं के नाम पर है, और यह भी माना जाता है कि उन्होंने वाराणसी में संकटमोचन हनुमान मंदिर की स्थापना की थी।
गोस्वामी तुलसीदास की महिमा और योगदान
गोस्वामी तुलसीदास को हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल की सगुण धारा की रामभक्ति शाखा का प्रतिनिधि कवि माना जाता है। उनकी महिमा और महत्व कई दृष्टियों से अतुलनीय है:
- लोकनायक कवि: तुलसीदास को “जन-जन का कवि” कहा जाता है। उन्होंने अपनी रचनाएं उस अवधि भाषा में कीं, जो उत्तर भारत के जनसाधारण की भाषा थी, जिससे उनकी रचनाएँ आसानी से लोगों तक पहुंच सकीं। उन्होंने केवल अपनी कविता से लोगों का मनोरंजन नहीं किया, बल्कि उन्हें जीवन के उच्च आदर्शों और मूल्यों से भी परिचित कराया।
- समन्वयवादी दृष्टि: तुलसीदास ने अपने काव्य में विभिन्न मतों, संप्रदायों और विचारधाराओं में समन्वय स्थापित किया। उन्होंने शैवों और वैष्णवों, ज्ञानियों और भक्तों, तथा सगुण और निर्गुण के बीच सामंजस्य बैठाने का प्रयास किया। उनके “रामचरितमानस” में सभी वर्गों और विचारों को स्थान मिला है।
- सामाजिक चेतना: तुलसीदास केवल एक भक्त या कवि नहीं थे, बल्कि एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से तत्कालीन समाज की विसंगतियों पर प्रकाश डाला और उनके निराकरण के उपाय सुझाए। उन्होंने गरीबी, अकाल और बेरोजगारी जैसी समस्याओं का भी अपनी रचनाओं में वर्णन किया है।
- नैतिक एवं धार्मिक प्रेरणा: उनकी रचनाएँ आज भी धर्म, नीति और भक्ति के अमिट स्रोत हैं। उन्होंने राम को “मर्यादा पुरुषोत्तम” के रूप में प्रस्तुत कर मानव जीवन के सभी उच्चादर्शों को समाहित किया। उनकी भक्ति दास्य भाव की थी, जिसमें आराध्य के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव था।
प्रमुख कृतियाँ
गोस्वामी तुलसीदास ने अनेक ग्रंथों की रचना की, जिनमें से 12 रचनाएँ प्रामाणिक मानी जाती हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध और कालजयी रचना ‘रामचरितमानस’ है।
उनकी प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं: - रामचरितमानस: यह उनकी सबसे महान और लोकप्रिय कृति है, जिसे उन्होंने अवधी भाषा में दोहा-चौपाई शैली में लिखा है। यह ग्रंथ भगवान राम के जीवन चरित्र का विस्तृत वर्णन है और भारतीय घरों में आज भी इसका पाठ किया जाता है।
- विनय पत्रिका: इसमें तुलसीदास ने भगवान राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान सहित विभिन्न देवी-देवताओं की स्तुति की है। यह ब्रज भाषा में लिखी गई है और इसमें उनके हृदय के भक्ति भाव का उत्कृष्ट चित्रण मिलता है।
- कवितावली: यह ब्रज भाषा में कवित्त और सवैया छंदों में रचित है, जिसमें राम कथा का विभिन्न प्रसंगों में वर्णन है।
- गीतावली: यह ब्रज भाषा में रचित पदों का संग्रह है, जिसमें राम कथा को गेय पदों के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
- दोहावली: इसमें नीति, भक्ति और राम कथा से संबंधित दोहे संकलित हैं।
- कृष्णगीतावली: यह भगवान कृष्ण के बाल-रूप और उनकी लीलाओं से संबंधित पदों का संग्रह है।
- पार्वती मंगल: इसमें भगवान शिव और पार्वती के विवाह का वर्णन है।
- जानकी मंगल: इसमें भगवान राम और सीता के विवाह का वर्णन है।
- रामाज्ञा प्रश्नावली: यह ज्योतिष और शकुन-विचार से संबंधित एक ग्रंथ है।
- बरवै रामायण: इसमें राम कथा को बरवै छंद में प्रस्तुत किया गया है।
- रामलला नहछू: यह एक संस्कार गीत है, जिसमें राम के विवाह के प्रसंगों का वर्णन है।
- वैराग्य संदीपनी: इसमें वैराग्य और ज्ञान से संबंधित विषयों पर चर्चा की गई है।
तुलसीदास जी का साहित्य भारतीय समाज के लिए एक अमूल्य धरोहर है। उनकी रचनाएं हमें न केवल भक्ति और आध्यात्मिकता का मार्ग दिखाती हैं, बल्कि जीवन जीने के सही तरीके और सामाजिक मूल्यों का भी ज्ञान कराती हैं। गोस्वामी तुलसीदास जयंती हमें उनके जीवन और शिक्षाओं को याद करने और उन्हें अपने जीवन में उतारने के लिए प्रेरित करती है।
