रहली दस लक्षण पर्व पर छठवें दिवस उत्तम संयम धर्म पर प्रवचन करते हुए मुनिश्री चन्द्र सागर जी ने कहा कि संसार में जन्म तो संभव है पर जीवन में संयम का आना दुर्लभ है स्वास्थ शांति स्वर्ग चारित्र समृद्धि संयम के बिना कुछ नहीं मिल सकता।
संयमी और असंयमी व्यक्ति संसार में साथ-साथ जन्म लेते हैं साथ-साथ बैठते है संयमी सत्कर्म करता है और अपने कर्मों की निर्जरा कर लेता है दूसरा असंयमी होता है जो दुष्कर्मों से कर्म बांधता है। असयंमी व्यक्ति में बुद्धि है पर विवेक नहीं होता इसलिए वह बुद्धि हीन माना जाता है वह कागज के फूल के समान है जो सुंदर तो होता है पर उसमें गंध और गुण नहीं होते ,
संयम और संतोष के चलते दूध घी की नदियां बहाने वाले देश में आज शुद्ध पानी का अभाव है पुण्य के प्रभाव से समृद्धि तो आई है पर संयम के अभाव में चारित्र नहीं आ पा रहा प्रकृति है देखने में आता है जानवर भी अपनी इंद्रियों पर संयम रखते हैं जिसको जैसा वातावरण दिया गया है वह उसी के अनुसार लगभग जीवन यापन करता है लेकिन मनुष्य को जितनी प्रवृत्तियां बताई गयी हैं वह लगभग उनके विपरीत चलता है। असंयम प्राय: धन की अधिकता और धन की कमी से ही होता है क्योंकि धन की कमाई में संयम का अभाव होता है पहले जनता अपनी गाड़ी कमाई का धन मंदिर में दान देते थे और राजकोश में जमा करते थे आज राजकोष के धन का गलत उपयोग हो रहा है धन का सदुपयोग किए बिना मानसिक संतुष्टी नहीं मिलती ।
असंयम का दूसरा अर्थ जल्दबाजी भी है देव दर्शन पूजा स्वाध्याय में जल्दबाजी करना इन क्रियाओं की औपचारिकता है औपचारिक रूप से किया गया कोई भी कार्य असंयम है इससे किए गए कार्य का परिणाम नहीं मिलता। बोलने में बैठने खड़े होने में खाने पीने में जीवन के दैनंदिक जीवन में संयम ही सामाजिक और व्यक्तिगत उत्थान में सहायक है यहीं से धर्म का रास्ता आसान हो जाता है धर्म शास्त्रों में तीर्थंकरों की वाणी में जो संयम का मार्ग बताया गया है हम उसे शब्द से स्वीकार करना चाहिए यही सुख समृद्धि और मोक्ष का मार्ग है।
इसलिए बहती थी प्राचीन भारत में दूध की नदियां…..मुनि श्री
संयम और संतोष के चलते दूध घी की नदियां बहाने वाले देश में आज शुद्ध पानी का अभाव है पुण्य के प्रभाव से समृद्धि तो आई है पर संयम के अभाव में चारित्र नहीं आ पा रहा
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